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कविता

जब सूरज सेल्फी लेता है

तुषार धवल


( मरीन ड्राइव , मुंबई)

सँझियारे पानी के कैमरे से
सेल्फी लेता
तंदूरी सूरज
मुस्कान टिकाये रखने की जतन में
थोड़ा 'लुक-कौन्शियस' हुआ है
तमाशाई कोई मेघ
जाते जाते ठहर गया है
उसे देखकर
हवा ने हौले से खींचा है उसे,
"अब चल्लोना !"

थोड़ी हरकत हुई वहाँ।

सड़क से गाड़ियों का धुआँ
अपने संग धूल भी ले उड़ा
आसमानी पिकनिक पर
जहाँ
उड़ती मैना की टोली ने छेड़ा उन्हें
लजाई धूलकणों का माँगटीका
सुनहरी छटा में दमक उठा

मकानों पर उग आए मोबाइल टावर्स पर
चढ़कर एक पतंग टाँग दी जाए
कुछ कंदील रोशनी के लटका दिये जाएँ
पटाखे छोड़े जाएँ पैराशूट में लहराते हुए
अभी यही खयाल आया है
उस जोड़े को
जिसके
चुंबन में सम्मोहित होंठ
पिघलते मक्खन पर
नरम शहद का स्वाद बन रहे हैं

हिंसा हवस होड़ की
अपच से अनसाई
उकताई उबकाई से
उबरने को आतुर दुनिया
दृश्य गंध स्पर्श स्वाद स्वप्न के पंचकर्म से
कायाकल्प की ललक लिए
ऐसी ही मिलती है

जबकि
देखा जाए तो
हर एक दृश्य
हर एक चेहरे के पीछे
भीषण घमासान
विदारक हाहाकार
मचा होता है।

जीवन दर-रोज़ का कारोबार नहीं
प्रतिबद्धता बन जाता है, इसी जगह।


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